सता रहा हारने का डर, क्या इसलिए PM मोदी थोक के भाव बांट रहे “भारत रत्न”?

सता रहा हारने का डर, क्या इसलिए PM मोदी थोक के भाव बांट रहे "Bharat Ratna"?

सता रहा हारने का डर, क्या इसलिए PM मोदी थोक के भाव बांट रहे "Bharat Ratna"?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार (9 फरवरी) को पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह और कृषि वैज्ञानिक डॉ एम एस स्वामिनाथन को “भारत रत्न” (Bharat Ratna) देने का ऐलान किया. इसके पहले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को भी भारत रत्न देने का ऐलान किया गया था. भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है और इसे लोकसभा चुनाव से ठीक पहले देने का ऐलान किया गया है. जिससे लोगों के मन में कई तरह की शंका पैदा हो रही है. राजनीतिक पंडित भी मान रहे हैं कि भारत रत्न देने के पीछे मोदी सरकार का चुनावी पैतरा हो सकता है. ऐसे में आइए हम समझते हैं इसके चुनावी मायने.

संघ के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश

सबसे पहले बात करते हैं लालकृष्ण आडवाणी की. राम मंदिर आंदोलन में इनका कितनी अहम भूमिका थी, ये सभी जानते हैं. इस बीच कई बार पीएम मोदी पर लालकृष्ण आडवाणी को दरकिनार करने के भी आरोप लग चुके हैं. हाल ही में हुए अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में भी उन्हें नहीं आने की नसीहत दी गई थी. इससे पहले भी कई बार सार्वजनिक मंचों पर उन्हें नजरअंदाज किया गया. इससे पीएम मोदी और संघ में भी फूट की खबरों को हवा मिल गई थी. लेकिन अब प्रधानमंत्री ने लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न (Bharat Ratna) देकर संघ के साथ अपने मदभेदों को सुधारने की कोशिश की है. इसलिए पीएम मोदी के इस कदम को पूरी तरह से चुनावी राजनीति के रूप में देखा जा रहा है.

हर समुदाय को खुश करने का प्रयास

कर्पूरी ठकुर, पीवी नरसिम्हा राव और चौधरी चरण सिंह को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान का ऐलान भी कुछ इसी तरह से देखा जा रहा है. पीएम मोदी इन तीनों के जरिए चुनावी समीकरण साधने की कोशिश कर रहे हैं. इस सभी हस्तियों को सम्माम देकर बीजेपी अलग-अलग समुदायों को खुश कर रही है. जिससे लोकसभा चुनाव में उसे ज्यादा से ज्यादा वोट मिल सके. एक तरह से वह भारत रत्न के इस्तेमाल एक चुनावी टूल की तरह कर रही है, जो भारत रत्न के साथ देश का भी घोर अपमान है. बता दें कि नियमों के मुताबिक, एक साल में केवल तीन ही भारत रत्न पुरस्कार दिए जाते हैं. पर इस साल एक साथ 5 पुरस्कार दिए जा रहे हैं. इससे पहले सिर्फ एक बार 1999 में चार लोगों को पुरस्कार दिया गया था.

क्या सता रहा हारने का डर?

कहा यह भी जा रहा है कि बीजेपी को इस बार सीटों को गंवाने का डर सता रहा है, इसीलिए वह और ज्यादा हाथ-पैर मार रही है. एक के बाद एक करके सभी छोटी पार्टियों से गठबंधन करने का प्रयास कर रही है. चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देकर बीजेपी ने राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी को अपनी तरफ कर लिया. इसे किसानों और जाटों के वोटों को साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. अगर आरएलडी बीजेपी के साथ गठबंधन कर लेती है तो पश्चिमी यूपी की 27 लोकसभी सीटों का गणित बदलना तय माना जा रहा है.

किसानों को लुभाने की राजनीति

जयंत चौधरी की पकड़ किसानों में भी बहुत अच्छी है. 13 महीने चले किसान आंदोलन के बाद बीजेपी को इस चुनाव में किसानों का वोट गंवाने का डर सता रहा था. और डर हो भी क्यों ना, उस आंदोलन में लगभग 700 से अधिक किसानों ने अपनी जान गंवाई थी. इसके बाद भी मोदी सरकार ने उनकी मांगे नहीं पूरी की.

इन सब के बाद मोदी सरकार को लोकसभा चुनाव में जो 400 सीट लाने के दावे कर रही है, उसे किसानों के वोट की सख्त जरूरत है. इसके लिए पीएम मोदी ने गजब की राजनीती खेली है. किसानों के चहीते चौधरी चरण सिंह और एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया और किसानों को वोट काफी हद तक अपनी तरफ कर लिया. बता दें कि एम एस स्वामीनाथन हरित क्रांति के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं. उन्होंने किसानों के लिए बहुत कुछ किया. पर आज बीजेपी सरकार किसानों को लुभाने के लिए स्वामीनाथन का ही इस्तेमाल कर रही है.

बिहार में भी अपनी पकड़ को मजबूत बनाने के लिए बीजेपी ने भारत रत्न की इस्तेमाल किया. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न (Bharat Ratna) का ऐलान होने के बाद नीतीश कुमार पलट गए और बीजेपी के साथ आ गए.

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