Ayodhya: अगर लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या जाते तो लूट लेते महफिल, इसलिए किए गए साइड लाइन
अयोध्या (Ayodhya) में 22 जनवरी (सोमवार) को राम मंदिर में राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन हुआ. जिसमें देश भर की शख्सियतों का जमावड़ा देखने को मिला. लेकिन इन सब के बीच राम मंदिर का सपना साकार करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी अयोध्या में नजर नहीं आये.
इस कारण नहीं गए अयोध्या
ऐसे में कुछ राजनीतिक पंडितों ने दावा किया कि यह एक सोची समझी साजिश थी. यही वजह है कि प्राण प्रतिष्ठा में निमंत्रण देने के दौरान ही लालकृष्ण आडवाणी को अयोध्या (Ayodhya) नहीं आने की नसीहत दी गई थी. राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने लाल कृष्ण आडवाणी को लेकर कहा था कि वे बुजर्ग हो चले हैं, ऐसे में उनका राम मंदिर उद्घाटन में आना ठीक नहीं रहेगा. मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो बीजेपी के वरिष्ठ नेता शीतलहर के कारण अयोध्या नहीं गए.
अयोध्या नहीं जाने पर हुए भावुक, पुराने दिनों को किया याद
आडवाणी ने लिखा है कि श्रीराम भारत की आत्मा का प्रतीक हैं. वह भारतीयों के उच्च मूल्यों का जीवन जीने की आकांक्षा के एक आदर्श हैं. मैंने सदैव कहा है कि मेरी राजनीतिक यात्रा में अयोध्या आंदोलन सबसे निर्णायक परिवर्तनकारी घटना थी, जिसने मुझे भारत को पुनः जानने और इस प्रक्रिया में अपने आप को भी फिर से समझने का अवसर दिया. नियति ने मुझे 1990 में सोमनाथ से अयोध्या (Ayodhya) तक श्रीराम रथयात्रा के रूप में एक महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने का अवसर दिया.
चर्चा का केंद्र बिंदु बन जाते आडवाणी
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, अगर लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या जाते तो सारी महफिल वह लूट लेते. उनपर ही कैमरे का अधिक फोकस देखने को मिलता. जिस वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आकर्षण का केंद्र नहीं रह पाते. इसके साथ ही डर था कि अगर वे इस कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचते तो वे अपने वर्षों के संघर्ष का नतीजा देख भावुक हो जाते. जिससे चर्चा का केंद्र वे खुद बन जाते. ऐसे में उन्हें कार्यक्रम (Ayodhya) से दूर रहने की नसीहत दी गई थी.
क्यों राम मंदिर मामले में अहम हैं आडवाणी
राम मंदिर के निर्माण के लिए किए गए वर्षों के संघर्ष में लालकृष्ण आडवाणी की अहम भूमिका रही है. 1990 के दशक में, जब राम मंदिर आंदोलन शुरु हुआ, तब वे बीजेपी के अध्यक्ष हुआ करते थे. 1990 में उन्होंने ही अयोध्या में कारसेवा का ऐलान किया था. वो लालकृष्ण आडवाणी ही थे, जिन्होंने राम भक्तों को अयोध्या पहुंचने के लिए प्ररित किया था.
इस कारण गिरा विवादित ढांचा
इसके बाद उसी साल उन्होंने 25 सितंबर को 10 हजार किलोमीटर की रथ यात्रा निकालने की योजना बनाई, जो देश के कई हिस्सों से गुजरते हुए अयोध्या जाने वाली थी. हालांकि, इस यात्रा से पहले ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उनका गिरफ्तारी से गुस्साए कारसेवक 30 अक्टूबर को अयोध्या (Ayodhya) पहुंच गए और विवादित बाबरी ढांचे की तरफ बढ़ने लगे. कारसेवकों को रोकने के लिए गोलियां तक चलाई गईं. इस गोलीबारी कांड ने आग में घी डालने का काम किया. नतीजतन 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवकों ने विवादित बाबरी ढांचे को गिरा दिया.